अयोध्या के राम मंदिर के मुख्य पुजारी महंत सत्येंद्र दास जी का निधन हो गया। वे 85 वर्ष के थे और लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे थे। लखनऊ के संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (PGI) में उनका इलाज चल रहा था, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली। उनका निधन न केवल अयोध्या बल्कि पूरे हिंदू समाज के लिए एक अपूरणीय क्षति है। सत्येंद्र दास जी ने अपना पूरा जीवन भगवान श्रीराम की सेवा और भक्ति में समर्पित कर दिया था। उनका जाना राम भक्तों के लिए एक भावनात्मक क्षण है।
सत्येंद्र दास जी का जीवन परिचय
महंत सत्येंद्र दास जी का जन्म उत्तर प्रदेश के एक धार्मिक परिवार में हुआ था। उन्होंने अपने प्रारंभिक जीवन से ही आध्यात्मिक पथ को अपनाया। युवावस्था में ही उन्होंने संन्यास ले लिया और धर्म के मार्ग पर चलने लगे। अयोध्या के राम जन्मभूमि परिसर से उनका विशेष लगाव था। वे सदैव श्रीराम की पूजा-अर्चना और राम मंदिर की व्यवस्था में लगे रहे।
वे राम जन्मभूमि आंदोलन के महत्वपूर्ण साक्षी रहे हैं। राम मंदिर निर्माण की प्रक्रिया में उन्होंने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी सादगी और समर्पण ने उन्हें एक आदर्श संत के रूप में प्रतिष्ठित किया।
राम मंदिर के प्रति समर्पण
महंत सत्येंद्र दास जी ने अपने जीवन का अधिकांश समय अयोध्या में बिताया। वे राम जन्मभूमि पर प्रतिदिन पूजा-पाठ और अनुष्ठानों का संचालन करते थे। उनके नेतृत्व में राम मंदिर में अनेक धार्मिक और आध्यात्मिक अनुष्ठान किए गए। उन्होंने राम मंदिर निर्माण के समर्थन में भी अपना योगदान दिया और इसके लिए वे निरंतर प्रयासरत रहे।
राम मंदिर के निर्माण कार्य के दौरान उन्होंने न केवल आध्यात्मिक बल्कि प्रबंधन से जुड़े कार्यों में भी मार्गदर्शन किया। वे श्रद्धालुओं के लिए प्रेरणा के स्रोत थे और उनकी भक्ति और तपस्या ने अनेक भक्तों को आध्यात्मिक मार्ग अपनाने के लिए प्रेरित किया।
अंतिम समय और बीमारी
बीते कुछ समय से महंत सत्येंद्र दास जी की तबीयत ठीक नहीं चल रही थी। उन्हें कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। बेहतर इलाज के लिए उन्हें लखनऊ के संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (PGI) में भर्ती कराया गया था। डॉक्टरों की तमाम कोशिशों के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका। 85 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली।
उनके निधन की खबर से अयोध्या और संपूर्ण हिंदू समाज में शोक की लहर दौड़ गई। संत समाज, श्रद्धालु और राम भक्त उनके निधन से अत्यंत दुखी हैं।
अयोध्या में शोक की लहर
महंत सत्येंद्र दास जी के निधन की खबर सुनते ही अयोध्या में शोक की लहर दौड़ गई। उनके अनुयायी, स्थानीय लोग और मंदिर से जुड़े संत समाज ने गहरा दुख व्यक्त किया। श्रद्धालुओं ने उनके प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
उनके पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए अयोध्या लाया गया, जहां बड़ी संख्या में भक्तों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। संत समाज और भक्तों के बीच उनका विशेष स्थान था, और उनकी कमी हमेशा महसूस की जाएगी।
महंत सत्येंद्र दास जी की शिक्षाएं और योगदान
महंत सत्येंद्र दास जी का जीवन धर्म, सेवा और समर्पण का उदाहरण था। उन्होंने अपने प्रवचनों और उपदेशों के माध्यम से लोगों को धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। उनकी शिक्षाएं आज भी समाज के लिए प्रासंगिक हैं। उन्होंने हमेशा शांति, प्रेम और भक्ति का संदेश दिया।
राम मंदिर निर्माण को लेकर उनकी भूमिका विशेष रही। वे सदैव श्रीराम की सेवा में तत्पर रहते थे और भक्तों का मार्गदर्शन करते थे। उन्होंने अपने जीवन में सादगी और ईमानदारी का परिचय दिया, जो आज भी अनुकरणीय है।
श्रद्धांजलि और समाज की प्रतिक्रिया
महंत सत्येंद्र दास जी के निधन पर देशभर से संत समाज, राजनेताओं और भक्तों ने शोक व्यक्त किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, और विभिन्न धार्मिक नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।
योगी आदित्यनाथ ने ट्वीट कर लिखा, “महंत सत्येंद्र दास जी का निधन संपूर्ण हिंदू समाज के लिए अपूरणीय क्षति है। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन श्रीराम की सेवा में समर्पित कर दिया। प्रभु श्रीराम से प्रार्थना है कि वे उन्हें अपने चरणों में स्थान दें।”
अयोध्या में विभिन्न धार्मिक संगठनों ने उनके सम्मान में विशेष प्रार्थना सभाओं का आयोजन किया।
निधन के बाद की व्यवस्था
महंत सत्येंद्र दास जी के निधन के बाद राम मंदिर की पूजा व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए मंदिर समिति ने आवश्यक कदम उठाए हैं। नए मुख्य पुजारी की नियुक्ति जल्द ही की जाएगी, लेकिन उनकी अनुपस्थिति में मंदिर का संचालन संत समाज और प्रशासन की देखरेख में होगा।
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निष्कर्ष
महंत सत्येंद्र दास जी का निधन हिंदू समाज के लिए एक बड़ी क्षति है। उन्होंने अपने संपूर्ण जीवन को धर्म और श्रीराम की सेवा में अर्पित किया। उनके योगदान को सदैव याद किया जाएगा। उनके सिद्धांत और शिक्षाएं आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत बनी रहेंगी। राम मंदिर आंदोलन और पूजा व्यवस्था में उनका योगदान ऐतिहासिक रहेगा।